Premanand Ji Maharaj Pravachan
प्रेमानंद महाराज का प्रवचन: आज का मानव जीवन जितना उन्नत हुआ है, उतना ही तनाव और बीमारियों से भरा भी है। डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप, और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर रही हैं। अस्पतालों में उपचार उपलब्ध है, लेकिन मानसिक शांति और आत्मा की बेचैनी का समाधान वहाँ नहीं मिलता। प्रेमानंद महाराज अपने प्रवचनों में बार-बार यह बताते हैं कि बीमारी केवल शारीरिक नहीं होती, बल्कि यह चेतना और मन की भी होती है। जब मन अस्थिर होता है, तब शरीर चाहे कितनी भी दवा ले, वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सकता। महाराज जी के प्रवचन में भक्ति, श्रद्धा, आत्मविश्वास और नाम जप की शक्ति से बीमारियों पर विजय पाने की प्रेरणा दी गई है।
बीमारी का असली उद्देश्य
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जब कोई बीमारी आती है, तो उसका उद्देश्य केवल कष्ट देना नहीं होता, बल्कि आत्मा को एक नए मोड़ पर लाना होता है। हम अक्सर सोचते हैं कि रोग हमारे भाग्य का परिणाम हैं, लेकिन महाराज जी का कहना है कि यह सोच बीमारी को और बढ़ा देती है। बीमारी हमें रुकने और अपने भीतर झांकने का अवसर देती है। जब शरीर काम नहीं करता, तब आत्मा से संवाद संभव होता है। यह केवल पीड़ा का समय नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की शुरुआत भी हो सकती है।
नाम जप की शक्ति
बीमारी के समय सबसे अधिक टूटता है मन। दवाओं से शरीर को आराम मिल सकता है, लेकिन मन को कौन संभाले? प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि नाम जप से बड़ा कोई इलाज नहीं। जब हम सच्चे भाव से ईश्वर का नाम जपते हैं, तब वह केवल शब्द नहीं रह जाता, बल्कि चेतना बन जाता है। यह हमारे भीतर ऊर्जा भर देता है। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि मंत्र जप से मस्तिष्क में सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं।
धैर्य और सेवा का महत्व
जब कोई बीमारी आती है, तो धैर्य सबसे पहले छूटता है। प्रेमानंद महाराज समझाते हैं कि जैसे बारिश में पेड़ अपनी जड़ों को फैलाकर टिके रहते हैं, वैसे ही हमें भी स्थिरता लानी चाहिए। धैर्य ही उपचार के लिए शरीर को तैयार करता है। इसके अलावा, महाराज जी का एक अनमोल संदेश है कि 'बीमारी से बाहर निकलने का सबसे सुंदर तरीका है किसी और के लिए जीना शुरू करना।' जब हम दूसरों के दुख में सहभागी बनते हैं, तो हमारी पीड़ा कम होती है।
सोच में बदलाव
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, शरीर केवल मन का दर्पण है। जैसे ही सोच में बदलाव आता है, शरीर भी उसका अनुसरण करता है। सकारात्मक सोच ही असली चिकित्सा है। जब हम ईश्वर की कृपा पर विश्वास करते हैं, तो आत्मबल जाग्रत होता है।
आध्यात्मिकता और चिकित्सा का संतुलन
प्रेमानंद महाराज हमेशा कहते हैं कि दवा और दुआ दोनों का साथ होना चाहिए। डॉक्टर की सलाह को अनदेखा न करें, लेकिन हर दवा के साथ नाम जप जरूर करें। इससे उपचार की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
परिवार का सहयोग
प्रेमानंद महाराज यह स्पष्ट करते हैं कि बीमारी केवल रोगी की नहीं, बल्कि पूरे परिवार की परीक्षा होती है। परिवार का विश्वास और धैर्य रोगी के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। जब परिवार साथ होता है, तो रोगी अकेला महसूस नहीं करता।
निष्कर्ष
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, हर बीमारी जीवन की दिशा मोड़ने का एक अवसर है। जो व्यक्ति इस समय में घबराता नहीं, बल्कि ध्यान करता है, सेवा करता है और नाम में लीन रहता है, वह न केवल बीमारी को, बल्कि पूरे जीवन को जीत सकता है।
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